प्रेग्नेंसी के दौरान यह महिला कोविड-19 पॉजिटिव पाई गई थी। उस दौरान उनकी कोख में दो जुड़वा बच्चे पल रहे थे। शिशुओं की स्वस्थ डिलेवरी के दौरान इन्होंने कई कठनाइयों को झेला। यहां जानें प्रेग्नेंसी के दौरान उनकी कोविड सफर की कहानी, खुद उनकी जुबानी।
कोरोना वायरस से दुनिया भर के करोड़ों लोग परेशान हैं। इस वायरस का संकट न सिर्फ जीते-जागते लोगों को सता रहा है, बल्कि ये उसे भी हानि पहुंचा सकता है, जिसने अभी दुनिया भी नहीं देखी। आज हम आपको एक ऐसी महिला से रू-ब-रू करा रहे हैं, जिन्होंने इस जानलेवा वायरस की लंबी लड़ाई उस वक्त लड़ी जब उनकी कोख में एक नहीं बल्कि 2-2 नन्ही जानें पल रही थीं।
यहां बात हो रही है 29 साल की महिला संघमित्रा बेहरा के बारे में, जो अपने आखिरी प्रेग्नेंसी के वक्त कोरोना की शिकार हुईं थीं। हाल ही में बेहरा ने अपने दर्द को बयां किया। आइए जानते हैं प्रेग्नेंसी के दौरान संघमित्रा के कोविड सफर की कहानी खुद उनकी जुबानी।
हल्की खांसी और बुखार से हुई शुरुआत
मेरा नाम संघमित्रा बेहरा है और मैं पुणे में एक आईटी कंपनी में काम करती हूं। मेरी उम्र 29 साल है और मैं 13 सितंबर कोविड-19 पॉजिटिव पाई गई थी। उस दौरान मेरी कोख में दो जुड़वा बच्चे पल रहे थे। मैं 37 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी और आने वाले 5 दिनों के भीतर मेरी डिलीवरी की तारीख तय थी। संघमित्रा अपनी प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों में हल्की खांसी और बुखार की चपेट में आईं। बाद में उन्हें संदेह लगा, तो उन्होंने अपना
जिसमें उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई और इसी बीच उन्हें अपने जुड़वां शिशुओं की डिलेवरी भी जल्द करानी थी। शिशुओं की स्वस्थ डिलेवरी के दौरान संघमित्रा ने कई कठनाइयों को झेला। डिलेवरी के वक्त उन्हें दर्दनाक दो सर्जरी से गुजरना पड़ा और इस बीच वे लंबे वक्त तक आइसोलेट रहीं। अपने अनुभव के अनुसार वे दूसरों को ऐसी सिचुएन आने पर सावधानियां बरतने को कहती हैं।
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कोविड-19 में दिया 2 जुड़वा को जन्म, मां ने दूर से देखी बच्चों की झलक
मझे 12 सितंबर का दिन याद है, जब मुझे कोविड-19 के शुरुआती लक्षणों का आभास हुआ था। उस दिन मुझे नहाने के बाद ही अहसास होने लगा था कि मुझमें कोविड-19 के लक्षण हो सकते हैं। उस दिन मैंने अपने बाल धोए थे। जैसा कि मुझे साइनसाइटिस की समस्या है। इसलिए जब भी मैं सिर धोकर नहाती हूं तो कोल्ड और थोड़ा सा सिरदर्द महसूस होने लगता है। दोपहर तक, मुझे हल्का बुखार महसूस हुआ लेकिन मैंने इसे नजरअंदाज किया, हालांकि मैं अपनी सेहत की निगरानी करती रही। देर शाम तक बुखार बरकरार रहा और फिर मैंने एक पेरासिटामोल लिया और जल्दी डिनर करके सो गई। रात में मुझे न सिर्फ मेरे सिर में दर्द हुआ बल्कि पूरी बॉडी में जबरदस्त दर्द होने लगा। रात के करीब 1.30 बजे मुझे अचानक बेचैनी होने लगी और मै नींद से जाग गई। इस बीच मेरा बुखार तो उतर गया था, लेकिन मेरे पैरों में दर्द शुरू हो गया। तब मैं घबरा गई और मेरे परिवार के सदस्यों ने मुझे इमरजेंसी में भर्ती कराया क्योंकि मैं अपनी डिलेवरी डेट के काफी करीब थी। तभी मेरा कोविड-19 टेस्ट हुआ और रिजल्ट आने तक मुझे अलग लेबर रूम में रखा था। जब मेरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो मैं हैरान रह गई। तब स्त्री रोग विशेषज्ञ को बुलाया गया और उन्होंने सी-सेकंड के जरिए तुरंत डिलीवरी करने को कहा। मैंने सर्जरी के लिए हां कर दी और सुबह ही मैंने सुबह अपने दोनों बच्चों को जन्म दिया। हालांकि मुझे उनसे अलग रहना पड़ा। मैंने दूर से सिर्फ उनकी एक झलक देखी और फिर मुझे आइसोलेशन वार्ड में ट्रांसफर कर दिया गया।
डिलेवरी के बाद शुरू हुआ संघमित्रा का संघर्ष
मेरे लिए असली संघर्ष डिलेवरी के बाद शुरू हुआ क्योंकि उस वक्त मैं अपनी फैमिली से दूर हो गई थी। मेरे परिवार के किसी भी सदस्य को अंदर जाने की अनुमति नहीं थी और मुझे पूरी तरह से अलग रखा गया था। आप कल्पना कर सकते हैं कि दो शिशुओं को जन्म देने के बाद तुरंत उनसे बिछड़ जाना और फिर अकेले रहना कितना मुश्किल हुआ होगा। इतना ही नहीं एनेस्थीसिया के कारण मैं पूरी तरह से कॉन्शियस भी नहीं थी। मेरे ऑक्सीजन लेवल की लगातार निगरानी की जा रही थी।
लगभग 2 बजे मेरा
होना शुरू हो गया। मुझे तुरंत सीटी स्कैन के लिए ले जाया गया, जिससे पता चला कि मेरे फेफड़े डेमेज हो चुके हैं। उसके बाद मुझे ICU में शिफ्ट कर दिया गया। दो दिन तक मैं आईसीयू रही और चौथे दिन जब मेरे ऑक्सीजन लेवल में सुधार देखा गया तो मुझे फिर आइसोलेशन वार्ड में भेजा गया। 5वें दिन मुझे डॉक्टर्स की कुछ शर्तों के साथ अस्पताल से छुट्टी मिल गई। तब मेरे दोनों बच्चे एनआईसीयू में थे।
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अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी नहीं मिली बच्चों से मिलने की अनुमति
मेरे डिस्चार्ज होने के एक दिन बाद मेरा एक बच्चा घर आया। अब तक मैंने अपने बच्चों को अपनी गोद में लिया था क्योंकि डॉक्टर ने मुझे 14 दिनों के लिए अलग रहने के लिए कहा था। कुछ दिन बाद मैं धीरे-धीरे ठीक हो रही थी कि तभी मुझे 19 सितंबर को पेट के निचले हिस्से में तेज दर्द होने लगा। मैं पूरी रात सो नहीं सकी और 20वें दिन की दोपहर को मैंने फिर स्त्री रोग विशेषज्ञ को बुलाया और उन्होंने तुरंत इमरजेंसी में रिपोर्ट करने व अल्ट्रासाउंड करवाने को कहा। मैं दोबारा अस्पताल गई और चूंकि यह रविवार था तो वहां स्टाफ काफी कम था। मैंने किसी तरह अल्ट्रासाउंड कराया और रिजल्ट आने का इंतजार किया। बाद में मुझे रेक्टस म्यान हेमेटोमा का पता चला था।
दूसरी सर्जरी कराने के बाद बच्चों को फीड कराया
यह फैसला लिया गया कि मुझे खून के थक्के हटाने के लिए तुरंत सर्जरी से गुजरना होगा क्योंकि वे मेरे मूत्राशय को ब्लॉक कर रहे थे। इसे रिमूव करने का कोई और रास्ता नहीं था। यह मेरे लिए फिर से एक बुरे सपने की तरह था। मैंने 20 सितंबर की शाम को अपनी दूसरी सर्जरी की और मुझे आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। इसके बाद मुझे फिर आइसोलेशन वार्ड में रहना पड़ा। उसके बाद, मैं आखिरकार 25 सितंबर को घर आई। मेरे दोनों बच्चे तब तक घर पर थे, लेकिन मुझे उन्हें देखना और लाड़ करना बाकी था।
अगले हफ्ते मैंने दोनों बच्चों को अपने ब्रेस्ट ने निकालकर दूध दिया क्योंकि डॉक्टर ने मुझे सीधे संपर्क में न आने की सलाह दी थी। मैंने अपनी गर्भावस्था के दौरान करीब 15 किलो वजन बढ़ा था तब मैं लगभग 75 किलो की थी और जब मैं घर पर लौटी तो 58 किलो की थी।
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हल्के में न लें कोरोना वायरस
अब मैं धीरे-धीरे ठीक हो रही हूं। मुझे अपनी स्ट्रेंथ हासिल करने और अपने दम पर काम करने में करीब 2 माह लग गए हैं। मैं अपनी कहानी बयां कर रही हूं ताकि लोगों को समझ में आ सके कि COVID-19 को हल्के में लिया जाना सही नहीं है। अगर आपके घर में बुजुर्ग माता-पिता, बच्चे या गर्भवती महिलाएं हैं तो कृपया अतिरिक्त सावधानी बरतें। दुर्भाग्यवश, अपनी गर्भावस्था के आखिरी मैं इसकी चपेट में आई जिससे मुझे और मेरे परिवार को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा।
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