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Monday, May 31, 2021

अकेले स्टेरॉयड व डायबिटीज नहीं है फंगल इंफेक्शन के कारण, डॉक्टर्स ने बताए फंगस फैलाने वाले नए फैक्टर्स

कोरोना वायरस की पहली लहर के बाद हमने इसकी दूसरी लहर को भी कड़ी टक्कर दी है। दूसरी लहर में अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन न मिलने की वजह से लाखों लोगों की जान गई है। हालांकि, राहत की बात ये भी है कि वैक्सीनेशन और लॉकडाउन लगने के चलते भारत में अब 2 लाख से भी कम मामले आ रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर ब्लैक फंगस के मामले काफी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और कोविड के बाद अब तमाम लोग नए-नए फंगल इंफेक्शन की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में अब कोविड के नए सिम्टम्स से निपटना काफी कठिन हो गया है। खासकर उनके लिए जो पहले से डायबिटीज के मरीज हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है। ऐसे COVID-19 मरीज ही म्यूकोर्मिकोसिस (Mucormycosis) या फंगल संक्रमण की एक और गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। यहां हम हर तरह के फंगल इंफेक्शन को लेकर जानकारी दे रहे हैं। इसके साथ ही फंगस के मुख्य फैक्टर और निदान के बारे में भी बता रहे हैं। (फोटो साभार: istock by getty images)

वैक्सीनेशन के बाद भले ही कोरोना वायरस की दूसरी लहर के मामलों में कमी आई हो लेकिन अब mucormycosis ब्लैक फंगस ने कोविड मरीजों पर कहर ढा रखा है। फंगल इंफेक्शन का मुख्य कारण स्टेरॉयड दवाओं का प्रयोग और डायबिटीज को माना जा रहा है। लेकिन इसके अलावा भी और कई तरह के फेक्टर्स हैं जिसके चलते फंगल इंफेक्शन फैल रहा है।


Mucormycosis in Covid: अकेले स्टेरॉयड व डायबिटीज नहीं है फंगल इंफेक्शन के कारण, डॉक्टर्स ने बताए फंगस फैलाने वाले नए फैक्टर्स

कोरोना वायरस की पहली लहर के बाद हमने इसकी दूसरी लहर को भी कड़ी टक्कर दी है। दूसरी लहर में अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन न मिलने की वजह से लाखों लोगों की जान गई है। हालांकि, राहत की बात ये भी है कि वैक्सीनेशन और लॉकडाउन लगने के चलते भारत में अब 2 लाख से भी कम मामले आ रहे हैं। लेकिन वहीं दूसरी ओर ब्लैक फंगस के मामले काफी तेजी से बढ़ते जा रहे हैं और कोविड के बाद अब तमाम लोग नए-नए फंगल इंफेक्शन की चपेट में आ रहे हैं।

ऐसे में अब कोविड के नए सिम्टम्स से निपटना काफी कठिन हो गया है। खासकर उनके लिए जो पहले से डायबिटीज के मरीज हैं और जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है। ऐसे COVID-19 मरीज ही म्यूकोर्मिकोसिस (Mucormycosis) या फंगल संक्रमण की एक और गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। यहां हम हर तरह के फंगल इंफेक्शन को लेकर जानकारी दे रहे हैं। इसके साथ ही फंगस के मुख्य फैक्टर और निदान के बारे में भी बता रहे हैं।

(फोटो साभार: istock by getty images)



​क्या है म्यूकोर्मिकोसिस?
​क्या है म्यूकोर्मिकोसिस?

म्यूकोर्मिकोसिस को पहले जाइगोमाइकोसिस (zygomycosis) के नाम से जाना जाता था, जो कि एक गंभीर फंगल इंफेक्शन है। ये फंगस म्यूकोर्मिसेट्स नामक मोल्डों के ग्रुप के कारण होता है, जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों और सड़ने वाले फलों और सब्जियों में पाया जाता है। अधिकतर इस बीमारी की चपेट में मधुमेह और

कमजोर इम्यूनिटी

वाले लोग आते हैं।

ये वो लोग हैं जो इम्यूनो सप्रेसेंट (immunosuppressant) जैसी स्टेरॉयड (Steroids) दवाओं का प्रयोग करने के साथ-साथ कीमोथेरेपी से गुजर रहे होते हैं जिससे इनके शरीर का इम्यून सिस्टम काफी कमजोर हो जाता है। इसलिए वे कोविड जैसे खतरनाक वायरस और कीटाणुओं से नहीं लड़ पाते और गंभीर सिम्टम्स का शिकार हो जाते हैं।

ये फंगल इंफेक्शन आमतौर पर साइनस, मस्तिष्क या फेफड़ों को इफेक्ट करता है और इसलिए COVID-19 से पीड़ित या रिकवर हो चुके लोग आसानी से इसकी चपेट में आ जाते हैं।

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​फंगल इंफेक्शन के प्रकार
​फंगल इंफेक्शन के प्रकार

ब्लैक फंगस

: ब्लैक फंगस इंफेक्शन जिसे अब 'महामारी' करार दिया गया है, क्योंकि सबसे ज्यादा इसी ने कहर बरपा रखा है। यह म्यूकोर्मिसेट्स नाम के एक समूह के कारण होता है, जो हवा में मौजूद होता है। ये फंगस मरीज के साइनस, फेफड़े और छाती में अपना संक्रमण छोड़ता है।

वाइट फंगस

: ब्लैक फंगस की तरह सफेद कवक रोग भी वातावरण में मौजूद 'म्यूकोर्माइसेट्स' यानी फंगी मोल्ड्स के कारण होता है। हालांकि, ये संक्रमण संक्रामक (contagious)। लेकिन अगर कोई

कमजोर इम्यूनिटी

वाला व्यक्ति ऐसी किसी सतह के संपर्क में आता है जिसमें ये इंफेक्शन है तो वह इसकी चपेट में आ सकता है।

येलो फंगस:

कथित तौर पर भारत में यूपी के गाजियाबाद में पीले कवक के संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। एक पीला कवक संक्रमण, अन्य फंगल संक्रमण के समान, दूषित वातावरण के माध्यम से फैलता है या जब एक संदिग्ध रोगी वातावरण में उगने वाले मोल्ड (मायकोमेस) को अंदर लेता है।

एस्परगिलोसिस फंगल संक्रमण:

काले, सफेद और पीले कवक के अलावा, गुजरात के वडोदरा के दो सरकारी अस्पतालों में पिछले एक सप्ताह में एस्परगिलोसिस नामक एक नए कवक संक्रमण के मामलों का पता चला है। एस्परगिलोसिस भी मुख्य रूप से सीओवीआईडी -19 रोगियों या उन लोगों में देखा जाता है जो हाल ही में बीमारी से उबर चुके हैं।

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मधुमेह और स्टेरॉयड के अलावा डॉक्टर्स ने बताए ये कारण
मधुमेह और स्टेरॉयड के अलावा डॉक्टर्स ने बताए ये कारण

फंगल इंफेक्शन के मुख्य कारण मधुमेह और विभिन्न इम्यूनो सप्रेसेंट स्टेरॉयड दवाओं को बताया जा रहा है। भारत सरकार के स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉक्टर सुनील कुमार के अनुसार, फंगल के पनपने का खतरा उन परिस्थितियों में ज्यादा होता है जब वातावरण अशुद्ध होता है। डॉ. कहते हैं कि 'पर्यावरण में नमी होना और अशुद्ध वातावरण में कोविड मरीजों का इलाज किए जाने से भी संक्रमण का अधिक खतरा रहता है। ये भी फंगल इंफेक्शन के मुख्य कारक हो सकते हैं।'

टाटा मेमोरियल अस्पताल के निदेशक डॉ. प्रवेश सीएस द्वारा हाल ही में बनाए गए एक ट्विटर थ्रेड के अनुसार, फंगल संक्रमण के कई कारण हैं - मधुमेह, स्टेरॉयड दवाएं, और कीमोथेरेपी। हालांकि, डॉ. प्रमेश का ये भी कहना है कि संक्रमण फैलने के मुख्य कारण मधुमेह और अत्यधिक स्टेरॉयड का उपयोग नहीं है।

इसके अलावा औद्योगिक ग्रेड ऑक्सीजन ( industrial grade oxygen), ह्यूमिडिफायर (humidifiers) यानी ह्यूमिडिफायर में फिल्टर पानी का प्रयोग, यूज किए गए मास्क का कई दफा इस्तेमाल और एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक प्रयोग भी फंगल इंफेक्शन के कारक हैं।

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​फंगल इंफेक्शन के लक्षण
​फंगल इंफेक्शन के लक्षण

यदि कोई व्यक्ति म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमण का शिकार हो चुका है, तो उसे इन लक्षणों पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि आने वाली जटिलताओं को रोका जा सके।

सिर दर्द

चेहरे के एक हिस्से में सूजन

खांसी और खूनी खांसी आना

नाक के चारों ओर काली पपड़ी दिखना

आंखों में धुंधलापन छा जाना

नाक से खून बहना, नाक बंद होना

सांस लेने में तकलीफ

सीने में दर्द



​ट्रीटमेंट
​ट्रीटमेंट

जिन लोगों में म्यूकोर्मिकोसिस संक्रमण का पता चला है, उन्हें सख्त निगरानी में रखने की आवश्यकता होती है। अभी तक, फंगल इंफेक्शन से संक्रमित मरीजों को एंटी-फंगल दवाएं दी जा रही हैं। वहीं, अगर संक्रमण बड़े पैमाने पर शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल गया है और दवाओं से ठीक नहीं किया जा सकता है। यही कारण है कि कुछ लोगों की आंखों की रोशनी भी चली जाती है तो कइयों के ऊपरी जबड़े भी जा रहे हैं। फंगल इंफेक्शन के मेडिकेशन के बाद रोगियों को चार से छह सप्ताह तक चलने वाली intravenous एंटी-फंगल प्रक्रिया की भी आवश्यकता हो सकती है।

इस आर्टिकल को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां

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