एक नए केमिकल ट्रीटमेंट से अब मेल और फीमेल स्पर्म को अलग कर सकता है। इस तरीके से आईवीएफ से बच्चा पैदा करने वाले पैरंट्स यह चुन सकेंगे कि उन्हें लड़का हो या लड़की। वैज्ञानिकों ने यह खोजा कि एक खास केमिकल से X क्रोमोसोम वाले स्पर्म (जिससे फीमेल का जन्म होता है) की स्पीड कम की जा सकती है वहीं Y क्रोमोसोम (मेल) की गति बढ़ जाती है। Plos Biology में छपी स्टडी के मुताबिक, चूहों पर किए गए प्रयोग में यह सामने आया कि 90 फीसदी बच्चे मेल पैदा किए थे। एक्स क्रोमोसोम में काफी जीन्स होते हैं वहीं छोटे वाई क्रोमोसोम में कम, जीन्स में इस अंतर की वजह से वैज्ञानिक इन दोनों में फर्क कर सकते हैं। हिरोशिमा यूनिवर्सटी के रिसर्चर मसायुकी का मानना है कि यह तकनीकी स्तनधारियों पर भी अपनाई जा सकती है। वैज्ञानिकों ने बताा, यह प्रक्रिया जो कि साधारण और सस्ती है, इससे डीएनए को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता। इससे आईवीएफ और आर्टिफिशल इनसीमेशन (कुछ पशुओं में होता है) में बच्चे के सेक्स का चुनाव आसान हो सकता है। शोधकर्ता बताते हैं कि वे पहले ही गायों और सुअरों में सिलेक्टिव मेल और फीमेल पैदा कर चुके हैं, हालांकि इस पर रिसर्च पब्लिश नहीं की गई। यूके में आईवीएफ के दौरान बच्चे के सेक्स का चुनाव करना गैरकानूनी है। लीड रिसर्चर मसायुकी कहती हैं, इंसानों पर इस तकनीकी का इस्तेमाल अभी सिर्फ विचाराधीन है और इसमें कई अहम एथिकल मुद्दे भी आ जाते हैं। केंट यूनिवर्सिटी ऑफ बायोसाइंसेस से पीटर एलिस कहते हैं कि यह खोज काफी महत्वपूर्ण हो सकती है। वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह से पैदा हुए चूहे अभी तो नॉर्मल हैं लेकिन लॉन्ग टर्म में इनका इफेक्ट देखना होगा।
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