ऐसे बच्चे जिन्हें बचपन में हुआ और वह थैरपी के जरिए ठीक हो गए, उन्हें बड़े होकर होने की आशंका ज्यादा रहती है। इस बारे में हाल ही में 'सर्कुलेशन' नाम के जर्नल में प्रकाशित स्टडी में जानकारी सामने आई है। इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने करीब 7,300 कैंसर मुक्त हो चुके बच्चों और 36,000 कैंसर से कभी भी प्रभावित नहीं होने वाले बच्चों को लेकर स्टडी की। इन बच्चों की औसत उम्र सात साल थी। इनमें कोरोनरी आर्टरी डिजीज, अरिद्मीआस, वॉल्व की समस्या, कार्डियोमायोपैथी, हार्ट फेलियर और पेरीकार्डियल जैसी दिल की बीमारियों के लक्षण आदि को लेकर जांच की गई। शोधकर्ताओं के सामने आया कि यंग ऐज के होने के बावजूद आम बच्चों के मुकाबले बचपन में कैंसर से बचने वाले बच्चों में दिल की समस्या होने के तीन गुना और हार्ट फेलियर के 10 गुना ज्यादा चांस होते हैं। इसके साथ ही ऐसे बच्चे जो ऐंथ्रासाइक्लिन कीमोथैरपी के ज्यादा एक्पोजर में आए या जिन्हें डायबीटीज, हाई बीपी जैसी समस्या हुई उनमें भी दिल की बीमारी होने की ज्यादा आशंका पाई गई। ऐंथ्रासाइक्लिन कीमोथैरपी कैंसर के इलाज में अहम मानी जाती है। यही वजह है कि दिल पर बुरा असर होने पर भी इसे बंद नहीं किया जा सकता। हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह सलाह दी कि डॉक्टर्स को इसकी जगह दिल की बीमारी के लिए जिम्मेदार दूसरे हेल्थ फैक्टर्स पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि कैंसर सर्वाइवर बच्चों में ये हेल्थ प्रॉब्लम्स आम होती हैं। ये फैक्टर्स कीमोथैरपी या रेडिएशन के संपर्क में आकर दिल के लिए टॉक्सिक हो सकती है और उसकी उम्र कम करते हुए कई बीमारियों को जन्म दे सकती है। शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि बचपन में कैंसर से सर्वाइव करने वाले बच्चों व बड़ों की लाइफस्टाइल, मेटाबॉलिक डिसऑर्डर और दिल की बीमारी से जुड़ी चीजों को लेकर लगातार फॉलो-अप करते रहना चाहिए ताकि उन्हें गंभीर स्थिति से बचाया जा सके।
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