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Thursday, August 29, 2019

मानसिक बीमारी से पीड़ित 90% मरीजों को इलाज की सुविधा नहीं

नई दिल्ली राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हाल में ही देश में लोगों के गिरते पर चिंता जताई। उनका कहना था कि देश आज काफी हद तक मानसिक महामारी के कगार पर है। लेकिन समस्या यह है कि इनमें से करीब 90 प्रतिशत को इलाज की सुविधा तक नहीं मिल पा रही है। सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO के आंकड़े भी इस बयान की तस्दीक करते हैं। मानसिक रोगियों के इलाज और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए 2017 में सरकार एक ऐक्ट लाई थी, लेकिन 2 साल से ज्यादा समय गुजरने के बावजूद देश के 10 राज्यों ने इस ऐक्ट पर अमल करने की जरूरत नहीं समझी। एक अनुमान के मुताबिक करीब 14 फीसदी आबादी को मानसिक चिकित्सा की जरूरत है, लेकिन संसाधन कम है। ये हैं हालत 14 फीसदी आबादी को मानसिक चिकित्सा की जरूरत 90% को इलाज की सुविधा तक नहीं 3827 रजिस्टर्ड मनोचिकित्सक ही उपलब्ध 13500 क्यों बढ़ रहे हैं मनोरोगी? इंडियन मेडिकल असोसिएशन के पूर्व सेक्रेट्री डॉ. अनिल बंसल का कहना है कि रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते तनाव, भागदौड़ और कंपीटिशन के कारण देश में मनोरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर महानगरों में। देश की करीब 20 प्रतिशत आबादी आज डिप्रेशन की समस्या से जूझ रही है, जिसमें युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही स्किजोफ्रीनिया और बायपोलर डिसऑर्डर के पेशंट्स भी बढ़ रहे हैं। जेनेटिक कारणों और बढ़ती उम्र के साथ अल्जाइमर्स और डिमेंशिया के रोगी भी बढ़ रहे हैं। बच्चों और युवाओं में बढ़ते तनाव के कारण आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। क्या कहता है ऐक्ट? इस ऐक्ट में जहां आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया है, वहीं यह मानसिक रोगी को इलाज पाने का अधिकार भी देता है। इसमें प्रावधान किया गया है कि किसी भी सरकारी या सरकारी अनुदान पाने वाले चिकित्सा संस्थान को किसी भी मानसिक रोगी का इलाज करना होगा। वह इसके लिए मना नहीं कर सकता। इसके साथ ही पेशंट को जरूरी दवाएं और अन्य सुविधाएं भी रियायती दरों पर देने का प्रावधान किया गया है। उन्हें जरूरत पड़ने पर निःशुल्क कानूनी सेवा भी देनी होगी। पेशंट को अपने इलाज का रिकॉर्ड हासिल करने का अधिकार होगा। उसकी देखभाल में अगर किसी तरह की खामी हो तो वह इसकी शिकायत करने का अधिकार भी रखेगा। ऐक्ट के मुताबिक, मानसिक रोगियों के हितों का ध्यान रखने के लिए केंद्रीय और राज्य स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य अथॉरिटी बनानी होंगी। ये अपने क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े हर मुद्दे पर नजर रखेंगी।


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