
अगर आप मीठा खाने के शौकीन हैं तो सावधानी बरतने की जरूरत है। भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम खुलासा किया है उनके शोध में चीनी के अधिक सेवन से लिवर कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी के बारे में पता चला है।

क्या आपका हर समय मीठा खाने का मन करता है? अगर हां, तो सावधान हो जाएं क्योंकि इससे आपको स्वास्थ्य संबंधी कुछ गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। हाल के एक शोध में खुलासा हुआ है कि अधिक शुगर का सेवन करने का मतलब है हमारी सेहत के लिए खतनराक बीमारियों को न्यौता देना है। यह रिसर्च IIT मंडी (IIT Mandi) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने किया है। शोध में उन्होंने अत्यधिक चीनी की खपत और फैटी लिवर (Fatty liver) के विकास के बीच अंतर्निहित जैव रासायनिक संबंधों (Underlying biochemical relationship) की पहचान की है। इसे मेडिकल के क्षेत्र में गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग (NAFLD) के रूप में जाना जाता है।
(फोटो साभार: istock by getty images)
क्या है NAFLD? (फैटी लिवर रोग)

NAFLD एक ऐसी स्थिति है जिसमें लिवर में अतिरिक्त चर्बी जमा हो जाती है। हैरान करा देने वाली बात यह है कि इस बीमारी के बारे में मरीज को भी पता नहीं चल पाता। यह रोग चुपचाप शुरू होता है और शुरू में दो दशक तक मरीज में किसी भी तरह के लक्षण न दिखने से बीमारी बढ़ जाती है।
शरीर में अधिक बसा यानि फैट लिवर की कोशिकाओं (liver cells) को परेशान कर सकता है। इस सिचुएशन में लिवर (सिरोसिस) पर निशान पड़ सकते हैं जो बाद में लिवर कैंसर का रूप ले सकता है। एनएएफएलडी के अधिक गंभीर होने पर उपचार कठिन हो जाता है।
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किन कारणों से होता NAFLD?

एनएएफएलडी (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) का कारण अधिक बसा वाली चीजों का सेवन है जिनमें से एक चीनी भी है। इसलिए इसे खाने से सावधानी बतरनी शुरू कर दीजए। सामान्य चीनी (सुक्रोज) और कार्बोहाइड्रेट के अन्य रूप में चीनी दोनों के अधिक सेवन से लिवर कैंसर का खतरा हो सकता है। ज्यादा मीठा और अधिक कार्बोहाइड्रेट की मात्रा शरीर में पहुंचने से लिवर उन्हें चर्बी में बदल देता है। इस प्रक्रिया को हेपेटिक डी नोवो लाइपोजेनेसिस या डीएनएल कहते हैं।
चूहों पर किया गया शोध

शोधकर्ताओं ने चूहों के मॉडल्स इस रिसर्च प्रक्रिया से यह दिखाया कि कार्बोहाइड्रेट की वजह से एक जटिल प्रोटीन एनएफ-केबी के सक्रिय होने व डीएनएल बढ़ने के बीच आपसी संबंध है जिसके बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है। शोध के डाटा से स्पष्ट है कि चीनी के जरिए हेपैटिक एनएफ पीबीपी 65 के सक्रिय होने से एक अन्य प्रोटीन सार्सिन कम हो जाता है जिसके चलते कैस्केडिंग जैव रासायनिक मार्ग (cascading biochemical pathway) से लिवर का डीएनएल एक्टिव हो जाता है।
भारत की स्थिति

आईआईटी मंडी के शोधार्थी डॉ. विनीत डैनियल का कहना है कि देश की लगभग 9 से 32 प्रतिशत आबादी में यह समस्या है। अकेले केरल में ही 49 प्रतिशत आबादी इससे ग्रस्त है। स्कूली बच्चों में भी जो मोटे हैं उनमें 60 प्रतिशत में यह समस्या है। सामान्य चीनी (सुक्रोज) व कार्बोहाइड्रेट के अन्य रूप में चीनी दोनों इसकी वजह है।
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IIT टीम ने खोजा इलाज

मीठे के सेवन लिवर में चर्बी जमा होने के बीच आणविक संबंध स्पष्ट होने पर इस बीमारी का इलाज ढूंढना आसान होगा। एनएफ-केबी को रोकने की दवा चीनी की वजह से लिवर में चर्बी बढ़ने की समस्या भी दूर की जा सकती है। सार्सिन घटने से एनएफ-केबी इनहिबिटर की चर्बी नियंत्रण क्षमता कम हो जाती है।
लिवर में चर्बी होने की जानकारी के जरिए यह भी पता चला है कि इसमें एनएफ-केबी की खास भूमिका होती है। इसके पता चलने के बाद मेडिकल साइंस के सामने एनएएफएलडी (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) के इलाज का भी नया रास्ता खुल गया है।
चीनी के सेवन से हो सकती हैं ये बीमारियां

चीनी के अधिक सेवन से होने वाले एनएएफएलडी (Non-Alcoholic Fatty Liver Disease) के लक्षणों का मरीज को काफी लंबे वक्त बाद लगता है। इस रोग की चपेट में आने के बाद व्यक्ति को सूजन, कैंसर अल्जाइमर रोग, एथेरोस्क्लेरोसिस, आईबीएस, स्ट्रोक, मांसपेशियों की बर्बादी और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
शोध ऐसे समय में आया है जब भारत ने NAFLD को कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और स्ट्रोक (NPCDCS) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम की पहल की है।
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