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केवल मानव मल द्वारा ही नहीं बल्कि टॉयलट पाइप (Toilet Pipe) द्वारा भी कोरोना वायरस (Coronavirus) एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच रहा है। यहां जानें, क्या है पूरी बात...
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-अमेरिका के वैज्ञानिक कई महीने पहले इस बात को कह चुके हैं कि कोरोना का संक्रमण मानव मल द्वारा भी फैल सकता है। क्योंकि अमेरिका में मिले कोविड-19 पेशंट की पॉटी में कोरोना वायरस के आरएनए पाए गए।
-अमेरिका की तरफ से यह बात चीन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए उस शोध के बाद आया था जिसमें उन्होंने मानव मल द्वारा कोरोना संक्रमण के फैलने की आशंका जताई थी।
-इसी क्रम में चिंता करने की एक बात यह है कि ना केवल मानव मल द्वारा बल्कि घरों के वॉशरूम में लगे कमोड के पाइप के जरिए भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैल सकता है।
क्या होता है आरएनए?
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-अगर आरएनए को लेकर आपका कॉन्सेप्ट क्लियर नहीं है तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी वायरस के आरएनए एक ऐसी संरचना होती है, जिसमें वायरस से संबंधित अनुवांशिक जानकारी होती है। जैसे, वायरस के जीन किस पदार्थ से बने हैं, इस वायरस में किस तरह म्यूटेशन (बदलाव) हो रहा है इत्यादि।
पॉटी में वायरस मिलने पर खतरा क्यों?
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-दरअसल, कोई व्यक्ति वायरस के संपर्क में आ जाता है तो उसके हाथ या शरीर के संबंधित अंग पर ये वायरस कई घंटों तक जीवित रहते हैं। सफाई या जानकारी के अभाव में ये वायरस चेहरे पर हाथ लगने से मुंह और नाक के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
-ऐसे में संक्रमित व्यक्ति के शरीर से उल्टी और मल के साथ कुछ मात्रा में वायरस शरीर से बाहर निकलते हैं। इस दौरान यदि कोई अन्य स्वस्थ व्यक्ति इस वायरस की चपेट में आ जाए तो यह वायरस उस व्यक्ति को भी बीमार बना देता है।
मल सूखने पर भी रहता है जीवित
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-जो संक्रमित व्यक्ति मल त्याग के लिए सीट का उपयोग करते हैं, उनके मल के साथ यह वायरस पाइपलाइन में पहुंच जाता है और कई दिनों तक पानी के अंदर जीवित रह सकता है।
-जो लोग खुले स्थानों पर शौच करते हैं, वहां मल सूखने के कई दिनों बाद तक यह वायरस सूखे हुए मल में जीवित रह सकता है। ऐसे में जानवरों के द्वारा या अन्य कारणों से एक बार फिर स्वस्थ व्यक्ति इस वायरस के संपर्क में आ सकता है।
पाइप और टॉयलट सीट के जरिए संक्रमण
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-टॉयलट सीट का उपयोग करते समय जब मल त्याग के बाद फ्लश किया जाता है तो इस दौरान हवा के दबाव के चलते फ्लश में निकलनेवाली पानी से एक तरह के क्लाउड का निर्माण होता है।
-एक स्टडी के मुताबिक ये क्लाउड्स मात्र 2 सेकंड में 6 फीट की ऊंचाई तक उठ सकते हैं। ऐसे में कोरोना वायरस भी ड्रॉपलेट्स के रूप में इन क्लाउड्स के माध्यम से हवा में सफर करता है, जो थोड़ी-सी असावधानी होने पर सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर सकता है। इसलिए अतिरिक्त सावधानी जरूरी है।
इस तरह सफर करती हैं कोरोना ड्रॉपलेट्स
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-कोरोना वायरस की ड्रॉपलेट्स किस तरह सफर करती हैं, इस बात को समझने के लिए आपको इस रिसर्च के बारे में जानना चाहिए। कुछ समय पहले सीडीसी के चाइना स्थित सेंटर की तरफ से एक शोध किया गया था।
-इस शोध में एक ऐसे खाली पड़े अपार्टमेंट के बाथरूम में कोरोना वायरस की ड्रॉपलेट्स मिलीं जो अपार्टमेंट कई महीनों से खाली पड़ा था। लेकिन इस अपार्टमेंट के ठीक नीचे वाले अपार्टमेंट में कुछ कोरोना पॉजिटिव मरीज रह रहे थे।
साफ हो गई यह बात
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-इस शोध के बाद यह बात साफ हो गई है कि जब कोरोना फ्लश और गटर पाइप्स के जरिए ड्रॉपलेट्स के रूप में वातावरण में मौजूद रहता है तब यह एयरोसोल्स के रूप में आस-पास के एरिया में भी पहुंच जाता है। एयरोसोल्स यानी एयरबोर्न पार्टिकल्स (कोरोना वायरस के ऐसे ड्रॉपलेट्स जो हवा के माध्यम से एक जगह से दूरी जगह संचारित होते रहते हैं।)
-ऐसे में यह बात एकदम साफ है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। यदि किसी सोसायटी में या बिल्डिंग में किसी एक व्यक्ति को भी यह संक्रमण होता है तो अन्य व्यक्ति कई तरह की जरूरी सावधानियां बरतने के बाद भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।
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