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Tuesday, June 25, 2019

World Vitiligo Day: सफेद दाग हों तो रबर-कैमिकल से बनाएं दूरी

विटिलिगो यानि , एक त्वचा संबंधी रोग है, जिसका खान-पान से कोई संबंध नहीं है। यह एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। इसमें स्किन का रंग बनाने वाले सेल्स यानी Melanocyte खत्म होने लगते हैं या काम करना बंद कर देते हैं, जिससे शरीर पर जगह-जगह सफेद-से धब्बे बन जाते हैं। यह समस्या मोटे तौर पर लिप-टिप यानी होठों और हाथों पर, हाथ-पैर और चेहरे पर, फोकल या शरीर के कई हिस्सों पर दाग के रूप में सामने आती है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लोग अपने आप को दूसरों से अलग महसूस करने लगते हैं। कुछ लोगों को गलतफहमी होती है कि इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसका इलाज मौजूद है, बस कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है। खास बात यह है कि यदि किसी व्यक्ति को विटिलिगो है तो वह टाइट कपड़ों और रबर-कैमिकल से दूर रहे क्योंकि यह विटिलिगो को बढ़ाते हैं।ज्यादातर लोग मानते हैं कि सफेद दाग एक लाइलाज बीमारी है। लेकिन यह गंभीर समस्या नहीं है। पर हां, इसका मरीज के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है जिसमें मरीज तनावपूर्ण महसूस करने लगता है। इस बारे में मैक्स पड़पड़गंज के डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश गिरधर बताते हैं कि विटिलिगो के बारे में अनेक मिथक और धारणाएं हैं, जिसके चलते लोग डिप्रेशन तक में चले जाते हैं। इसमें सबसे बड़ा मिथक यह है कि खट्टी चीजें न खाएं और मछली खाने के बाद दूध न पिएं। यह बिल्कुल गलत है। सच तो यह है कि विटिलिगो भोजन से संबंधित रोग नहीं है बल्कि यह ऑटो इम्यून सिंड्रोम है जिसके चलते सफेद दाग होने लगते हैं। उनका कहना है कि बड़ी बात यह है कि विटिलिगो कैसे ट्रिगर होती है, इस बारे में कोई नहीं जानता। जनसंख्या की करीबन डेढ़ प्रतिशत आबादी विटिलिगो से प्रभावित है। हालांकि इससे घबराने की जरूरत नहीं है लेकिन हां, कुछ चीजों से सावधानी बरतने की जरूरत है जैसे यदि किसी को विटिलिगो है तो वह टाइट कपड़े न पहनें और साथ ही रबर व कैमिकल जैसी चीजों से दूर रहे क्योंकि इससे विटिलिगो और बढ़ सकता है। विटिलिगो का इलाज डॉ. गिरधर बताते हैं कि हमेशा डॉक्टर के सुझाव और उसकी देखरेख में ही दवाएं लेनी चाहिए क्योंकि दवाएं दोधारी होती हैं। सही तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो फायदा मिलेगा, गलत तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो नुकसान हो सकता है। साथ ही इसका इलाज नैरोबैंड अल्ट्रावायलट से भी किया जाता है और यह सबसे ज्यादा प्रचलित ट्रीटमेंट है। गर्भवती महिलाओं का ट्रीटमेंट भी इसी से किया जाता है। इसके अलावा शल्य चिकित्सा में मिलेनोसाइट ट्रांसफर (सैलुलर ट्रांसप्लांट) से भी इसका इलाज किया जाता है। यह दोनों ही इलाज विटिलिगों में काफी प्रभावी हैं। यह है विटिलिगो की स्थिति यह त्वचा की बीमारी है जिसे सफेद दाग के नाम से जाना जाता है। इसमें शरीर की स्वस्थ कोशिकाएं प्रभावित होती हैं। दुनिया भर की लगभग 0.5 पर्सेंट से 1 पर्सेंट आबादी विटिलिगो से प्रभावित है, लेकिन भारत में इसका प्रसार बहुत ज्यादा है। विटिलिगो किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है, लेकिन विटिलिगो के आधा से ज्यादा मामलों में यह 20 साल की उम्र से पहले ही विकसित हो जाता है। वहीं 95 पर्सेंट मामलों में 40 वर्ष से पहले ही विकसित होता हैं। कुछ लोगों में घाव स्थिर रहता है, बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ता है, जबकि कुछ मामलों में यह रोग बहुत ही तेजी से बढ़ता है और बस कुछ ही महीनों में पूरे शरीर को ढक लेता है। 30 प्रतिशत केस में रहता है पारिवारिक इतिहास डर्मेटोलॉजिस्ट्स का कहना है कि लगभग 30 पर्सेंट मामलों में विटिलिगों से प्रभावित व्यक्ति के पारिवारिक इतिहास यह रह चुका है। यानी उनके परिवार में कोई न कोई सदस्य विटिलिगो का शिकार हो चुका है। विटिलिगो से प्रभावित व्यक्तियों के बच्चों में विटिलिगो विकसित होने का खतरा लगभग 5 पर्सेंट माना जाता है। यह विशेष रूप से बच्चों और गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकता है।


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