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Saturday, June 22, 2019

ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में नाकाम हो रहे हैं भारतीय: सर्वे

मालती अय्यर, नई दिल्ली यह दुर्भाग्य ही है कि भारत को दुनिया की कैपिटल (मधुमेह की राजधानी) कहा जाता है। बावजूद इसके ब्लड शुगर लेवल और डायबीटीज को लेकर भारतीयों में कम जागरुकता है। वे इस बात को लेकर जागरूक नहीं हैं कि गिरते-बढ़ते शुगर लेवल को कंट्रोल करने की कितनी सख्त जरूरत है। तीन महीने के अंतराल में ब्लड शुगर का स्तर निर्धारित करने के लिए एक टेस्ट किया जाता है जिसका नाम है HbA1c और पिछले महीने यानी मई में इसका स्तर 8.5 फीसदी था। जबकि 6 फीसदी HbA1c के स्तर को उन लोगों में सामान्य ब्लड शुगर माना जाता है, जिन्हें डायबीटीज नहीं है। यह बात एक नैशनल सर्वे में बतायी गयी है। लेकिन शहरी स्तर पर स्थिति और भी चिंताजनक है। खासकर मुंबई से कोलकाता और दिल्ली से चेन्नै के बीच। देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई शहर में लोग स्ट्रेस और नींद पूरी न होने से परेशान हैं और अक्सर इसकी शिकायत करते हैं। वहां जब HbA1c टेस्ट किया गया तो उसमें 8.2 फीसदी रीडिंग नोट की गई, जबकि दिल्ली में औसत रीडिंग 8.8 फीसदी मापी गई। यह सर्वे नोवो नॉर्डिस्क एजुकेशन फाउंडेशन द्वारा एक वर्ष के लंबे अध्ययन का हिस्सा है। इसमें 28 शहरों में 1.8 रोगियों की ब्लड शुगर रीडिंग को परखा गया। डायबीटीज में मरीज के शरीर में ब्लड शुगर को प्रोसेस करने की क्षमता कम हो जाती है, मेटाबॉलिज्म कमजोर हो जाता है। वक्त के साथ डायबीटीज किडनी, आंखें, नर्वस सिस्टम और अन्य मुख्य अंगों को बुरी तरह प्रभावित करती है। एक साल की अवधि के दौरान, चेन्नै जैसे शहरों में डायबीटीज के लिए एचबीए1सी का स्तर 8.4 फीसदी से 8.2 फीसदी गिरा। वहीं कोलकाता में इस स्तर में 8.4 फीसदी से 8.1 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। जबकि गुड़गांव में डायबीटीज के लिए एचबीए1सी का स्तर 8.6 फीसदी से 8.5 फीसदी तक गिर गया। खंडवा जैसे छोटे शहरों में जून 2018 में 9 फीसदी और मई 2019 में 8.2 फीसदी स्तर दर्ज किया गया। मेदांता मेडिसिटी के डॉ. अनूप मिश्रा के मुताबिक, 'भारत में डायबीटीज यानी मधुमेह के रोगियों की संख्या आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के बीच बढ़ रही है। उन्हें न तो इस स्थिति के महत्व के बारे में जानकारी है और न ही यह पता है कि डायबीटीज और ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल कैसे करना है। परिणास्वरूप बेहद कम उम्र में ही औसत ब्लड शुगर लेवल का स्तर काफी बढ़ जाता है।' यह सर्वे फ़ार्मासूटिकल फ़र्म नोवो नॉर्डिस्क इंडिया की हालिया भारत डायबिटीज़ केयर इंडेक्स रिपोर्ट का भी एक हिस्सा है, जो डायबिटीज़ और उससे जुड़ी देखभाल के बारे में बताती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में अकेले भारत में ही डायबिटीज केयर की लागत 63 हजार करोड़ रुपये थी। उस वक्त भारत में 72.9 मिलियन लोग डायबिटीज से प्रभावित थे और 80 फीसदी लोगों को इसका सही इलाज नहीं मिल रहा था। मेदांता में एंडोक्राइनॉलजी के प्रमुख डॉ. अम्बरीश ने कहा कि डायबीटीज महामारी अभी भी बढ़ रही है। कुछ साल पहले तक डायबीटीज 40 की उम्र के पार लोगों में होती थी लेकिन अब हम देख रहे हैं कि यह बीमारी 20 साथ के युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है।' उन्होंने आगे कहा कि उनके अस्पताल में 60 फीसदी बाइपास सर्जरी के रोगियों में मुख्य कारण डायबीटीज था। वहीं महानगरों की बात करें, तो वहां 60 की उम्र के पार लोगों में से 60 फीसदी को यह बीमारी है। लीलावती अस्पताल के एंडोक्राइनॉलजिस्ट डॉ. शशांक जोशी ने कहा, 'आमतौर पर डायबीटीज के रोगियों में 7 फीसदी के स्तर को सामान्य माना जाता है। अगर कुछ मामलों में यह स्तर थोड़ा ऊपर-नीच होता है तो उसे भी सामान्य ही मान लिया जाता है। बुजुर्गों में डॉक्टर 7.5 फीसदी के स्तर को सामान्य मानते हैं जबकि गर्भवती महिलाओं और बच्चों में 6.5 फीसदी के स्तर को सामान्य मान लिया जाता है।' इंडिया डायबिटीज़ केयर इंडेक्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनियंत्रित मधुमेह यानी डायबीटीज हार्ट, आंख, किडनी, नर्वस सिस्टम और अन्य प्रमुख अंगों की बीमारी के 3 करोड़ से अधिक मामलों का मुख्य कारण बनता है। प्रभावित करता है। तंत्रिका और अंग की जटिलताओं के 3 करोड़ से अधिक मामलों का कारण बनता है।


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