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Monday, August 12, 2019

Smoking न करने वालों के बीच भी तेजी से बढ़ रहा है Lung Cancer

नई दिल्ली दिल्ली की सिगरेट को हाथ न लगाने वालों को भी उतनी ही तेजी से फेफड़ों के कैंसर का शिकार बना रही है जिस स्पीड से स्मोकिंग करने वालों को होता है। दिल्ली के सर गंगा राम हॉस्पिटल के सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के चेस्ट सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन की तरफ से करवाई गई एक स्टडी में ये चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। 2018 में 50% लंग कैंसर के मामले के इस स्टडी में पिछले 30 सालों में हुई की जांच की गई जिसमें पाया गया कि साल 1988 में जहां 10 में 9 लंग सर्जरी उन लोगों की होती थी जो स्मोकिंग करते थे वहीं, साल 2018 में लंग कैंसर की सर्जरी का रेशियो 5:5 हो गया यानी 5 स्मोकिंग करने वाले और 5 नॉन स्मोकर। इससे भी ज्यादा चिंताजनक आंकड़े ये हैं कि लंग कैंसर की सर्जरी करवाने वाले 70 प्रतिशत लोगों की उम्र 50 साल से कम है औऱ वे सभी लोग नॉन स्मोकर हैं। 30 साल से कम के एजग्रुप वाले में एक भी व्यक्ति स्मोकर नहीं था। ज्यादातर मरीज 50 साल से कम और स्मोकिंग न करने वाले इस स्टडी में वैसे लोग जो स्मोकिंग छोड़ चुके थे उन्हें भी स्मोकर की कैटिगरी में ही रखा गया था। सर गंगा राम हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी और इंस्टिट्यूट ऑफ रोबॉटिक सर्जरी के कंसल्टेंट डॉ हर्थ वर्धन पुरी ने कहा, यह स्टडी इसलिए की गई क्योंकि डॉक्टरों ने इस बात पर ध्यान दिया कि लंग कैंसर की सर्जरी कराने वाले ज्यादातर मरीज बेहद युवा और नॉन स्मोकर थे। लंग कैंसर: प्रदूषण है सबसे बड़ा खतरा डॉ पुरी ने कहा, युवा और स्मोकिंग न करने वालों में तेजी से बढ़ रहे लंग कैंसर के मामलों को देखते हुए डॉक्टरों ने यह स्टडी की जिसमें मार्च 2012 से जून 2018 के बीच हुई लंग कैंसर की सर्जरी की डीटेल में जांच की गई। उसके बाद इस डेटा की साल 1988 के डेटा से तुलना की गई जिसमें यह बात सामने आयी कि बड़ी संख्या में स्मोकिंग न करने वालों को भी लंग कैंसर हो रहा है। स्मोकिंग न करने वालों को लंग कैंसर होने का जो आंकड़ा 30 साल पहले सिर्फ 10 प्रतिशत था वो अब बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है। गलत डायग्नोसिस और गलत ट्रीटमेंट का खामियाजा इस स्टडी में इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया कि लंग कैंसर के बहुत से केस में गलत डायग्नोसिस की वजह से भी खतरा अधिक होता है। करीब 30 प्रतिशत मरीज ऐसे होते हैं जिनकी डायग्नोसिस गलत होती है और उनकी बीमारी को पहले टीबी समझकर कई महीनों तक टीबी का इलाज किया जाता है लेकिन हकीकत में बीमारी लंग कैंसर की होती है। ऐसे में गलत डायग्नोसिस और गलत ट्रीटमेंट का भी खामियाजा मरीज को भुगतना पड़ता है।


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